ब्रिटिश संसद द्वारा अनेक चार्टर अधिनियम पारित किए गए, भारत में संवैधानिक विकास

भारतीय संविधान के विकास की धारणा को लोकमान्य तिलक द्वारा प्रस्तुत स्वराज विधेयक में पहली अभिव्यक्ति प्राप्त हुई। वर्ष 1922 में श्रीमती एनीबेसेन्ट की पहल पर केन्द्रीय विधानमण्डल की एक संयुक्त बैठक शिमला में आयोजित की गई। जिसमें संविधान निर्माण के लिए एक सभा बुलाने का निर्णय लिया गया। 24 अप्रैल, 1923 को तेज बहादुर सप्र की अध्यक्षता में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में कॉमन वेल्थ ऑफ इण्डिया का प्रारूप तैयार किया गया जो बाद में प्रारूप समिति के द्वारा प्रकाशित किया गया।

19 मई, 1928 को बंबई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में भारत के संविधान के सिद्धांत निर्धारित करने हेतु मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई। 10 अगस्त 1928 को इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।

ब्रिटिश शासन के दौरान हुए संवैधानिक विकास

यह भारतीयों द्वारा अपने देश के लिये संविधान निर्माण का प्रथम प्रयास था। भारतीय संविधान में जिन राजनीतिक संस्थाओं को स्थापित किया है, उनका विकास ब्रिटिश शासन के दो सौ वर्षों के लंबे शासनकाल के दौरान हुआ। ब्रिटिश शासन के दौरान हुए संवैधानिक विकास को दो चरणों में बाँटा जा सकता है।

  1. ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल के अंतर्गत हुए संवैधानिक विकास (1765 ई. से 1857 तक) और
  2. ब्रिटिश क्राउन के शासनकाल के अंतर्गत हुए संवैधानिक विकास (1858 ई. से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक) दूसरे चरण में भारत में प्रतिनिधि और उत्तरदायी सरकार की स्थापना की शुरुआत हुई। इन दोनों चरणों में ब्रिटिश संसद द्वारा अनेक अधिनियम चार्टर पारित किए गए जिनका वर्णन नीचे किया गया है।

ब्रिटिश संसद द्वारा अनेक अधिनियम चार्टर पारित

रेग्युलेटिंग अधिनियम 1773: ब्रिटिश संसद ने 1772 ई. में एक गोपनीय समिति की नियुक्ति की जिसकी सिफारिशों के फलस्वरूप 1773 ई. का रेग्युलेटिंग अधिनियम पारित किया गया। 1773 ई. से पहले बंगाल, बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसियाँ एक-दूसरे से अलग थीं।

इस अधिनियम द्वारा बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी को बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन करके बंगाल के गवर्नर जनरल को तीनों प्रेसीडेंसियों का गवर्नर जनरल बना दिया गया। गवर्नर जनरल के परिषद् में चार सदस्य होते थे। परिषद् में निर्णय बहुमत से लिये जाते थे, मत बराबर होने की स्थिति में गवर्नर जनरल निर्णायक मत दे सकता था। गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् इंग्लैण्ड स्थित निदेशक बोर्ड के प्रति उत्तरदायी थे।

भारत का प्रथम गवर्नर जनरल:-वारेन हेस्टिंग्स प्रथम चार पार्षद 1. फिलिप फ्रांसिस, 2. क्लुवेरिंग, 3.मॉनसन, 4. बरनैल

अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार

1-1773 के रेगुलेटिंग अधिनियम: में एक उच्चतम न्यायालय के गठन का भी प्रावधान किया गया था। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 1774 ई. में कलकत्ता में चार सदस्यीय उच्चतम न्यायालय की स्थापना हुई। इसके निर्णयों के विरूद्ध प्रीवि कौंसिल में ही अपील की जा सकती थी। इस प्रकार 1773 के अधिनियम द्वारा भारत में कंपनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण की शुरूआत हुई।

2-पिट्स इंडिया अधिनियम-1784: इस अधिनियम द्वारा इंग्लैण्ड में एक छ: सदस्यीय नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई। इस प्रकार पिट्स इंडिया अधिनियम ने शासन की द्वैध प्रणाली की स्थापना की, जिसमें एक ओर कंपनी का निदेशक मंडल तो दूसरी ओर नियंत्रण मंडल शासन की दो मुख्य इकाई थे।

3-चार्टर अधिनियम-1793: इस अधिनियम द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।

4-चार्टर अधिनियम 1813: इस अधिनियम द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत के साथ व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। लेकिन इसके चीन के साथ व्यापार और चाय के व्यापार के एकाधिकार को बनाए रखा गया। इस अधिनियम ने भारत में शिक्षा और विज्ञान की प्रगति के लिए एक लाख रुपया वार्षिक निर्धारित किया।

चार्टर अधिनियम

5-चार्टर अधिनियम 1833: 1833 तक भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का व्यापक विस्तार हो चुका था। अत: इस पर स्थायी नियंत्रण की आवश्यकता के फलस्वरूप 1833 का चार्टर अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम द्वारा प्रशासन को केन्द्रीयकरण किया गया और कानून बनाने, प्रशासन एवं वित्त की समस्त शक्तियाँ सपरिषद् गवर्नर जनरल के हाथों में दी गई।

बंगाल का गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया तथा बंबई, मद्रास और अन्य प्रदेश गवर्नर जनरल के अधिकार में दे दिए गए। भारतीय कानूनों को संहिताबद्ध करने, सुधारने तथा संचित करने के लिए एक विधि आयोग के गठन का प्रावधान किया गया और एक कानूनी सदस्य जोड़ा गया।

Read:- भारतीय संविधान प्रारुप समिति के सदस्य, Bhartiya samvidhan के निर्माण के अलावा

इस अधिनियम द्वारा कंपनी के प्रशासन के अधीन किसी पद के लिए सभी ब्रिटिश अथवा भारतीय प्रजा को धर्म, जन्म स्थान, वंशानुक्रम और वर्ग के आधार पर समान रूप से योग्य माना गया।

6-चार्टर अधिनियम-1853: इस अधिनियम द्वारा कंपनी को मिलने वाला 20 वर्ष के लीज को समाप्त कर दिया गया। इसका अर्थ यह था कि ब्रिटिश संसद अब किसी भी समय भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर सकती थी। इंग्लैण्ड में भी एक विधि आयोग के गठन के लिए उपबंध किया गया जो भारतीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार कर सकती थी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *